विवाह पूर्व जन्मकुंडली मिलान का महत्व

विवाह पूर्व जन्मकुंडली मिलान का महत्व


कुंडली मिलान का अर्थ होता है विवाह के लिए वर और वधु की कुंडली में सामंजस्य देखना |   विवाह तय करने से पहले गुण मिलान के अतिरिक्त वर वधु की कुंडली में कुछ योगों का अलग से अध्य्यन करना चाहिए ताकि विवाह के बाद कोई पश्चाताप न हो |

कुंडली में सप्तम स्थान विवाह का माना जाता है तथा अगर सप्तम स्थान में पाप ग्रह स्तिथ हों, सप्तमेश नीच राशि में है, पापकर्तरी योग में है, आदि तो दाम्प्तय जीवन कष्टपूर्ण होने की सम्भावना रहती है|  इसी प्रकार सप्तमेश की एकादश, द्वादश या तृतीय भाव में स्तिथि भी विवाह में कष्ट, असफलता इंगित करती है|  इसके बाद विवाह के कारक शुक्र की स्तिथि का अध्य्यन भी करना आवश्यक है|  कन्याओं की कुंडली में गुरु विवाह का कारक होता है अतः इसका अध्य्यन जरूरी है | 

ये सब देख लेने के बाद वर वधु की कुंडली में अल्पायु योग, मारकेश दशा की निकटता, लग्न लग्नेश की स्तिथि, चन्द्रमा की स्तिथि आदि का आकलन कर लेना भी आवश्यक है क्योंकि इससे वर वधु के जीवन में उत्पन्न हो सकने वाली परिस्थितयों के बारे में जाना जा सकता है | 

उपरोक्त स्तिथियों का अध्य्यन करने के बाद कुंडली में विषकन्या योग तथा गंडमूल नक्षत्र की भी जांच अवश्य करें|  इसके बाद कुंडली में मांगलिक दोष की जाँच करें|  यदि जन्म लग्न से मंगल 1, 4, 7, 8 या 12 भाव में स्तिथ हो तो व्यक्ति मांगलिक होता है|  गुण मिलान में कुल 36 में से कम से कम 18 गुण अवश्य मिलने चाहिए | 

अतः यह स्पष्ट है कि अगर विवाह पूर्व वर वधु का कुंडली मिलान सावधानी पूर्वक किया जाये तथा सिर्फ गुणों को न मिलाकर दोनों की कुंडलियों का पूर्ण विश्लेषण किया जाये तो विवाह पश्चात प्रकट होने वाली अनेक अवांछित परिस्तिथयों से बचा जा सकता  है |

केमद्रुम योग के प्रभाव और उपाय

कुंडली में चन्द्रमा व्यक्ति की मानसिक स्तिथि, स्वास्थ्य तथा भाग्यवृद्धि का कारक माना जाता है |  यदि चन्द्रमा पक्षबल और दिग्बल में मजबूत हो और इसके दोनों और मंगल, बुध, शुक्र व शनि ग्रहों में से  कोई भी ग्रह स्तिथ हो तो चन्द्रमा को बलवान माना जाता है |

केमद्रुम योग के प्रभाव और उपाय


चन्द्रमा जब बली होता है तो व्यक्ति मानसिक रूप में सुदॄढ़, भाग्यवान तथा स्वस्थ होता है |  व्यक्ति को निरंतर अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती रहती है |  इसके विपरीत अगर चन्द्रमा के दोनों और ऊपर बताये अनुसार कोई ग्रह नहीं है तो चन्द्रमा निर्बल माना जाता है तथा इस कारण व्यक्ति को भाग्यवृद्धि नहीं मिल पाती और अंतिम समय पर बने हुए काम भी बिगड़ जाने की स्तिथि बनी रहती है|  व्यक्ति सदा निराश, परेशान, उदासीन रहता है तथा अकेले रहने की भावना अधिक होती है|  ऐसा व्यक्ति सदा असमंजस की स्तिथि में रहता  है और जल्दी विचलित व असहज हो जाता है |  अक्सर ऐसे व्यक्ति की माता का स्वास्थ भी ख़राब रहता है |  ऐसे व्यक्ति को हमेशा दूसरों के मार्गदर्शन की आवश्यकता रहती है तथा अपने निर्णयों को वह  जल्दी बदल देता है |

अगर चन्द्रमा दिग्बल से भी हीन हो (जन्म लग्न से दशम भाव में स्तिथ) तो व्यक्ति को उसकी मेहनत का फल नहीं मिलता, उसके द्वारा किये गए कार्यों की सराहना नहीं होती तथा यह स्तिथि उसके सभी कार्यों को विपरीत रूप से प्रभावित करती है |  ऐसे व्यक्ति अक्सर आजीवन मेहनत करते रहते हैं परन्तु कार्यक्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते हैं और इन्हे जीवन अनेक बार आर्थिक कष्टों का सामना भी करना पड़ता है|  चन्द्रमा के एक और अगर सूर्य अथवा राहु केतु हों तो यह अति  अशुभ केमद्रुम योग बनता है तथा इससे व्यक्ति की मानसिक स्तिथि अशांत होती है, गलत संगति की और आसानी से आकर्षित हो जाते हैं और उनमे स्वयं के बल पर निर्णय लेने की क्षमता की कमी होती है | 

कुंडली के अध्ययन द्वारा केमद्रुम योग को जाना जा सकता है तथा आवश्यक उपायों को करके इसका निवारण किया जा सकता है जैसे कि प्रतिदिन शिव उपासना करने से, चन्द्रमा के मंत्र का प्रतिदिन जप करने से, केमद्रुम शांति यन्त्र के प्रयोग से, आदि |

नौकरी व्यवसाय सम्बंधित समस्याएं तथा उनका निवारण



नौकर व्यवसाय करियर सभी  के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है |  अपने आसपास देखने पर हम पाएंगे की सभी के पास इनसे सम्बंधित कुछ न कुछ प्रश्न आशंकाएं आदि होती है | 

नौकरी व्यवसाय सम्बंधित समस्याएं तथा उनका निवारण


किस क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त की जाए जिससे की अपनी प्राकृतिक क्षमताओं का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके तथा कार्यक्षेत्र एक बोझ न बने |

  • नौकरी करें या व्यवसाय करें 

  • सरकारी नौकरी मिलने की कितनी संभावना है 

  • अगर व्यवसाय करें तो किस प्रकार का व्यवसाय करें 

  • नौकरी में अपेक्षित सफलता या आय नहीं होना 

  • शत्रुओं के कारण कार्यस्थल में तकलीफें, नौकरी से निलंबन, झूठे आरोप आदि 

  • व्यवसाय में अपेक्षित उत्तरोत्तर प्रगति और विकास नहीं होना 

  • शत्रुओं के कारण व्यवसाय में बाधा, हानि  

  • व्यवसाय में हानि, कर्ज, व्यर्थ मुकदमों में उलझना

और इन्ही प्रकार की अन्य समस्याएं हम अपने जीवन में या अपने आसपास पाते हैं 

किसी भी व्यक्ति की कुंडली के विस्तृत अध्य्यन द्वारा हम उस व्यक्ति के नौकरी व्यवसाय करियर सम्बन्धी विषयों के बारे में काफी कुछ जान सकते है तथा ज्योतिषीय उपायों के द्वारा इनका निवारण कर सकते हैं |  उदाहरण के लिए व्यक्ति द्वारा अपनी फैक्ट्री, दुकान, ऑफिस या अन्य कार्यस्थल पर श्री यंत्र/व्यापर वृद्धि यन्त्र/ श्री कुबेर यन्त्र की स्थापना करने से व्यवसाय में हानि की संभावनाएं कम हो जाती हैं तथा लाभ की मात्रा में वृद्धि होने लगती है |

कुंडली में वैवाहिक बाधा योग तथा उनके उपाय


कुंडली में कुछ ऐसे योग होते हैं जिनके कारण वैवाहिक जीवन में बाधाएं आने तथा कष्टपूर्ण बने रहने की संभावना बनी रहती है जैसे कि :-

कुंडली में वैवाहिक बाधा योग तथा उनके उपाय


  • विवाह होने में निरंतर विलम्ब होता रहता है 
  • विवाह करने की इच्छा ही नहीं होती 
  • विवाह सम्बन्ध होने के बाद टूट जाता है 
  • विवाह के बाद दंपत्ति में मतभेद होना तथा तलाक हो जाना 
  • दंपत्ति में आपसी आकर्षण न होने के कारण तलाक हो जाना 
  • शत्रुओं जैसे होते हुए भी विवाह बंधन में बंधे रहना 
  • तलाक के बाद दूसरे विवाह में भी सफलता नहीं मिलना 

ये सभी स्तिथियाँ कुंडली में उपस्थित ग्रह योगों के कारण उत्पन्न होती है जैसे कि सप्तमेश का नीच राशि में होना, शून्य या अंतिम अंशों में होना, पापकर्तरी योग में होना, सप्तमेश का ग्यारवहे, बारहवे या तीसरे घर में होना और उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव होना, तीन या चार ग्रह वक्री होना आदि |  इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य ग्रह स्तिथिया होती है जो की वैवाहिक जीवन में कष्ट तथा तनाव की स्तिथि उत्पन्न करती हैं | 

व्यक्ति की कुंडली का सावधानी पूर्ण अध्ययन करके ये जाना जा सकता है की उसके वैवाहिक जीवन में उत्पन्न कष्टकारी परिस्तिथियाँ किन ग्रह योगों के कारण हैं तथा इसके पश्चात् इनका ज्योतिषीय उपायों द्वारा निवारण कर व्यक्ति का वैवाहिक जीवन काफी हद तक ठीक किया जा सकता है |  उदहारण  के लिए अगर किसी कन्या के विवाह में बार बार रुकावटें आ रही हों, रिश्ते की बात बनते बनते बिगड़ जाती हो या रिश्ता तय होने के बाद भी टूट जाता हो तो इस स्तिथि से मुक्ति के लिए उस कन्या को माँ कात्यायनी देवी की पूजा करनी चाहिए|  इसी प्रकार वैवाहिक जीवन सम्बंधित अन्य सभी प्रकार की समस्याओं के निवारण के लिए भी उपाय किये जाते हैं |

विभिन्न अशुभ फलदायक तथा बाधा कारक दोष और उनका निवारण


अगर आप अपने इर्दगिर्द मौजूद विभिन्न व्यक्तियों के जीवन पर गौर करें तो आप महसूस करेंगे कि प्रायः कुछ व्यक्तियों का जीवन काफी शांतिपूर्ण, समृद्ध तथा प्रगतिशील होता है जबकि कुछ अन्य व्यक्ति अपने जीवन को अनेक कष्टों और समस्याओं से भरा हुआ पाते हैं| 




कुछ व्यक्तियों की समस्याएं एक दो आसान उपाय अपनाने से ही समाप्त हो जाती हैं जबकि कुछ अन्य व्यक्तियों को उन्ही उपायों से कुछ भी लाभ नहीं मिलता|

व्यक्ति को परिवार में अशांति
व्यवसाय में निरंतर धन हानि
निरंतर कर्ज में डूबते जाना
लगातार दुर्घटनाओं का शिकार होना, असाध्य रोगों से ग्रसित होना
संतान न होना या संतान से संतुष्टि न होना, संतान से कष्ट मिलना
शिक्षा में बाधा  आना, रूचि न होना
विवाह में विलम्ब या वैवाहिक जीवन में अशांति
स्वास्थ निरंतर ख़राब होना
निरंतर मुकदमों कोर्ट कचहरी में उलझते जाना
आदि विभिन्न प्रकार की समस्याएं बनी रहती हैं| 

ज्योतिषीय दृष्टिकोण के अनुसार इनका कारण होता है व्यक्ति की जन्मकुंडली में बने हुए विभिन्न प्रकार के अशुभ फल दायक तथा बाधा कारक दोष जैसे कि पितृदोष, प्रेतबाधा दोष, तंत्र बाधा दोष, शापित दोष, ग्रहण दोष, कालसर्प दोष, तथा इसी प्रकार के कई अन्य अशुभ फल दायक बाधा कारक दोष जो कि निरंतर व्यक्ति के जीवन को कष्टपूर्ण बनाए हुए रखते हैं तथा व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि क्या करे, क्या न  करे तथा एक प्रकार के दुष्चक्र में उलझा रहता है| 

अब  प्रश्न उठता है कि क्या आपकी जन्मकुंडली के विश्लेषण से ये जाना जा सकता है कि आपकी कुंडली में इस प्रकार के अशुभ फल दायक बाधा कारक दोष तो नहीं हैं तथा आपके जीवन में आ रही बाधाएं तथा कष्ट इन दोषों के कारण  हैं या आपकी कुंडली की किन्ही अन्य स्तिथियों के कारण से हैं|  एक कुशल ज्योतिर्विद द्वारा आपकी कुंडली का अध्ययन करके ये जाना जा सकता है कि आपकी कुंडली में उपरोक्त वर्णित अशुभ फल दायक बाधा कारक दोष  तो नहीं हैं तथा दोष पाए जाने पर ज्योतिषीय उपायों द्वारा उनका निवारण भी किया जा सकता है तथा जीवन पुनः प्रगति की और अग्रसर होता है|

उदाहरण के लिए पितृदोष को लेते हैं -   पितृदोष के संदर्भ में यदि हम धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार बात करें तो जब हमारे पूर्वजों की मृत्‍यु होती है और वे सदगति प्राप्‍त न करके अपने निकृष्‍ट कर्मो की वजह से अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति व असंतुष्टि का अनुभव करते हैं, तो वे अपने वंशजों से आशा करते हैं कि वे उनकी सदगति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके अथवा उनकी सदगति या मोक्ष हो सके।

उनकी भटकती हुई आत्मा को यदि सदगति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास करते हैं, तो वे आत्‍माऐं उन्‍हें आर्शीवाद देती हैं, जिससे उन लोगों की जिन्‍दगी धार्मिक, आर्थिक, व्‍यावसायिक, सामाजिक व मानसिक आदि सभी स्‍तरों पर काफी अच्‍छी हो जाती है। लेकिन यदि सदगति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास न करें, तो पूर्वजाें की आत्‍माऐं यानी पितर असंतुष्ट रहते हैं और अपने वंशजों को दु:खी करते हैं, जिसका लक्षण वंशजों की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष के रूप में परिलक्षित होता है।

शास्त्रों में पितृदोष से कई प्रकार की हानियों का विस्‍तृत वर्णन है जिनके अन्‍तर्गत यदि कोई व्‍यक्ति पित्रृदोष से पीडित हो, तो उसे अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियां व हानियां उठानी पडती है, जिनमें से कुछ निम्‍नानुसार हैं-

राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार की अज्ञात परेशानियों से पीडित होना पडता है।
ऐसे लोगों के घर में हमेंशा कलह व अशांति बनी रहती है।
रोग-पीडाएं इनका पीछा ही नहीं छोडती।
घर में आपसी मतभेद बने रहते है। आपस में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
संतान की प्राप्ति में विलंब होता है अथवा संतान होती ही नहीं है।
घर में धन का अभाव रहता है।
आय की अपेक्षा खर्च अधिक होता है अथवा अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
संतान के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पडती है।
अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
बने-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।

तो यदि बहुत मेहनत करने के बाद भी वांछित सफलता प्राप्‍त न हो, हमेंशा किसी न किसी तरह की परेशानी लगी ही रहे, घर के किसी न किसी सदस्‍य को मानसिक परेशानी या मानसिक रोग लगा ही रहे, जिसका ईलाज अच्‍छे से अच्‍छा चिकित्‍सक भी ठीक से न कर पाए, घर के निवासियों के बार-बार बेवजह अकल्‍पनीय रूप से एक्सीडेंट्स होते हों, तो इस प्रकार की अप्राकृतिक स्थितियों का कारण पितृ दोष हो सकता है।

ज्योतिष शास्त्र में  पितृदोष बनने की विभिन्न ग्रह स्तिथियों का विवरण दिया गया है और किसी व्‍यक्ति की जन्‍म-कुण्‍डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्‍यक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं। क्‍योंकि यदि व्‍यक्ति के पितर असंतुष्‍ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष से सम्‍बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।

भारतीय ज्‍योतिष-शास्‍त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्‍बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्‍म-कुण्‍डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उसके सम्‍बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं। उदारहण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग-

प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्‍योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।
चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्‍पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।
पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्‍यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है।
नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्‍य की हानि करता है।
दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
उपरोक्‍तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्‍बंधित अनिष्ट फल प्राप्‍त होते हैं ।

इसी प्रकार शास्त्रों में पितृदोष के निवारण हेतु विभिन्न उपाय भी वर्णित हैं जिनके प्रयोग द्वारा इस दोष की शांति की जा सकती है जैसे कि घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना, सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा, पीपल और बरगद के वृक्ष की पूजा करना, श्री मद भागवत गीता का ग्यारहवां अध्याय का पाठ करना आदि |

इसी प्रकार जन्मकुंडली के अध्ययन द्वारा अन्य अशुभ फल दायक तथा बाधा कारक दोषों को भी जाना जा सकता है तथा उनका निवारण करके जीवन को पुनः व्यवस्थित किया जा सकता है जैसे कि प्रेतबाधा दोष, तंत्र बाधा दोष, शापित दोष, ग्रहण दोष, कालसर्प दोष, तथा इसी प्रकार के कई अन्य दोष जो कि निरंतर व्यक्ति के जीवन को कष्टपूर्ण बनाए हुए रखते हैं |